व्रत की तिथि एवं महत्त्व

भीमसेनी एकादशी का व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इसे निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन बिना अन्न एवं जल के व्रत रखने की परंपरा है, इसलिए इसे “निर्जला” कहा जाता है।

पूजन विधि और धार्मिक महत्व

इस दिन भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। व्रती श्रद्धा और नियमपूर्वक उपवास करते हैं और दिनभर भक्ति में लीन रहते हैं।

धार्मिक मान्यता

ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से साल भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन उपवास करने से पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

पौराणिक कथा – क्यों कहते हैं ‘भीमसेनी एकादशी’?

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार व्यास जी ने पांडवों को एकादशी व्रत की महत्ता बताई। पांडवों में भीम, जो भोजन के बिना नहीं रह सकते थे, ने मोक्ष प्राप्ति के लिए केवल एक निर्जला एकादशी व्रत रखने का संकल्प लिया। तब से यह व्रत भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध हो गया।

 इस वर्ष व्रत की तिथि

वर्ष 2025 में निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून को रखा जाएगा। यह व्रत भक्तों के लिए विशेष पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है।

व्रत का लाभ

  • साल भर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य
  • सभी पापों का नाश
  • भगवान विष्णु की कृपा प्राप्ति
  • मोक्ष की प्राप्ति

 

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