नई दिल्ली, 23 जुलाई 2025। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश के शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में बदलाव की जोरदार वकालत करते हुए कहा है कि भारत को अब स्वयं को “भारतीय दृष्टिकोण” से समझने और प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में जो इतिहास पढ़ाया जाता है, वह पूरी तरह पश्चिमी नजरिए से लिखा गया है, जिसमें भारत की आत्मा और योगदान को अनदेखा किया गया है।
दिल्ली में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) और अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए मोहन भागवत ने कहा,
“आज जो इतिहास हमारे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है, वह पश्चिमी सोच का प्रतिबिंब है। उनकी दृष्टि में भारत कहीं नहीं है। उनके लिए चीन और जापान महत्वपूर्ण हैं, लेकिन भारत का कोई उल्लेख तक नहीं मिलता। भारत विश्व मानचित्र पर तो है, लेकिन उनके चिंतन में नहीं।”
भागवत ने वैश्विक शांति के प्रयासों पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि पहला विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद शांति की बातें की गईं, राष्ट्र संघ की स्थापना हुई, फिर भी दूसरा विश्व युद्ध हुआ। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र (UN) बना, लेकिन अब भी तीसरे विश्व युद्ध की आशंका बनी हुई है। उन्होंने कहा,
“दुनिया को अब एक नई सोच और नई दिशा की जरूरत है, और वह दिशा केवल भारतीयता से ही आ सकती है।”