सक्ती – जिले में फर्जी के.सी.सी. मामले की शिकायत में जांच अधिकारी की स्वेच्छा चारिता शुरू हो गई है। दृश्य यह नजर आ रहा है कि जांच अधिकारी शैलेन्द्र तिवारी अपने वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश का पालन करने के बजाय दोषियों को बचाने में लगा हुआ है। यही कारण है कि आज भी जांच लंबित है। जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित बिलासपुर सीईओ सुनील कुमार सोढ़ी ने एक बार फिर मामले की प्रारंभिक जांच के लिए शैलेंद्र तिवारी को द्वितीय स्मरण पत्र देते हुए 03 दिवस के भीतर प्रारंभिक जांच कर जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने एक बार फिर पत्र भेजा है। पूरा मामला फर्जी के.सी.सी. लोन का है।
प्राप्त जानकारी अनुसार सक्ती जिले के जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित शाखा डभरा और चंद्रपुर अंतर्गत सेवा सहकारी समिति देवरघटा, सुखदा, कलमा, बड़े कटेकोनी, बघौद, टुंडरीं, पलसदा में समिति प्रबंधक, ब्रांच मैनेजर, सुपरवाइजर, प्राधिकृत अधिकारी, कंप्यूटर ऑपरेटर और किसानों द्वारा मिलीभगत कर लाखों रुपए का फर्जी के.सी.सी. लोन वितरण कर दिया था जिसकी शिकायत जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक की गई थी। पूरे मामले की दस्तावेजी प्रमाण होने के बावजूद प्रशासनिक अमला मामले में जांच करने के बजाय चुप्पी साध लिए थे। लेकिन लगातार शिकायत होने के बाद जिला मुख्य कार्यपालन अधिकारी सुनील कुमार सोढ़ी (जिला सहकारी केंद्रीय बैंक बिलासपुर) ने मामले को संज्ञान में लेते हुए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक शाखा सक्ती के ब्रांच मैनेजर शैलेंद्र तिवारी को जांच अधिकारी बनाते हुए जांच करने की जिम्मेदारी दी है।
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परंतु जांच अधिकारी शैलेंद्र तिवारी द्वारा जानबूझकर इस मामले में दोषियों को बचाने का कार्य किया जा रहा है। मुख्य कार्यपालन अधिकारी द्वारा जांच के लिए पत्राचार करने के बावजूद जांच को प्रभावित करने में लगा हुआ है, ऐसे में जांच अधिकारी शैलेन्द्र तिवारी की कार्यशैली पर भी सवाल उठने लगा है। यह गंभीर आरोप इसलिए भी लगना लाजमी है क्योंकि अधिकारी द्वारा मामले की जांच के लिए दूसरी बार स्मरण पत्र भेजा है। ऐसे में इसके पहले जो पत्राचार किए गए थे उस पर जांच अधिकारी द्वारा आखिरकार जांच क्यों नहीं की गई? बड़ा सवाल है जिसका जवाब सिर्फ और सिर्फ जांच अधिकारी शैलेन्द्र तिवारी ही दे सकते हैं।
कब तक होगी जांच पूरी?
फर्जी के.सी.सी. लोन वितरण का मामला ना सिर्फ वित्तीय अनियमितता है बल्कि चंद लोगों के गलत कार्य करने के कारण उन समितियों पर भी वित्तीय भार के साथ-साथ उनके संकट में आने की भी संभावना है। ऐसे में दोषियों के विरुद्ध जांच करते हुए फर्जीवाड़ा करने वालों को समिति से बाहर का रास्ता दिखाना समिति हित, बैंक हित और शासन हित में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। ऐसे में लगातार शिकायत करते हुए दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की जा रही है। लेकिन जांच में भी ग्रहण लगाने में जांच अधिकारी पीछे नहीं है जिसके कारण जांच कब पूरी हो सकेगी यह भी अब सवालों पर है